Mission's Emblem in Hindi
Posted On Wednesday, October 17, 2018 | 4:11:35 PMसहज - मार्ग साधना पद्धति
यह चिन्ह "सहज - मार्ग " साधना पद्धति का सम्पूर्ण चित्र प्रदर्शित करता है । "सहज - मार्ग " साधना पद्धति के जनक एवं विशिष्ट व्यक्तित्व (Special Personality)सद्गुरू श्री रामचन्द्र जी ,शाहजहाँपुर ( उत्तरप्रदेश), भारत के निवासी, के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हुए "सहज - मार्ग " साधना पद्धति को मूल रूप में विश्व पटल पर जन-मानस तक पहुँचाने का संकल्प "सोसाइटी फॊर बाबूजीज् मिशन " ने लिया है, जिसकी व्याख्या उन्हीं के शब्दों में निम्नलिखित हैः-
ओ३म - तत्सत्
चिन्ह के निचले तल के निकट 'स्वास्तिक' हमारे आरम्भ बिन्दु का द्योतक है।
यह उन विभिन्न रूपों ,कर्म काण्डों एवं अभ्यासों का क्षेत्र है जिनके साथ हम ध्येय प्राप्ति के लिए "सहज - मार्ग "चिह्नित पथ पर अग्रसर होते हैं ।
बाधाओं एवं कठिनाइयों के पर्वतों को काटकर स्वयं प्रकृति ने यह मार्ग प्रशस्त किया है ।
भिन्न रूप धारण करने वाली स्थूलताओं के अंधकार एवं प्रकाश के विभिन्नक्षेत्रों से गुजरते हुए हम आगे बढ़ते चले जाते हैं, चाँद तथा सूर्य के क्षेत्रों से अत्यधिक ऊँचे, प्रत्येक पग पर सूक्ष्मतर होते हुए , जब तक कि हम पहुँच के उच्चतम बिन्दु को नहीं प्राप्त कर लेते।
उगते हुए सूर्य द्वारा निर्मित क्षेत्र, परम-पूज्य श्रद्धेय सदगुरू (बाबूजी) द्वारा प्रारम्भ किए हुए नवीन आध्यात्मिक युग को सूचित करता है ।
यह अन्तरिक्ष में सर्वत्र फैल जाता है और उन क्षेत्रों में भी व्याप्त हो जाता है जहाँ से हम यात्रा आरम्भ कर "सहज मार्ग " पथ पर अग्रसर होते हैं।
सृष्टि-रचना के पूर्व सर्वत्र विराजमान वस्तु को अंधकार कहा जा सकता है।
अंधकार का अर्थ है प्रकाश का न होना,अथवा प्रकाश का अर्थ है, अंधकार का न होना ।
जहाँ प्रकाश नहीं रहता वहाँ क्या रहता है ?
उसे हम अंधकार कह सकते हैं ।
जहाँ सब कुछ समाप्त हो जाता है वहाँ क्या प्राप्त हो सकता है ?
उसके लिए 'शून्यता' ही उपयुक्त शब्द है।
परन्तु , फिर भी 'अंधकार' एवं 'शून्यता' शब्दों से भी किसी न किसी वस्तु के अस्तित्व का बोध होता ही है,अतः वास्तविक अवस्था के वर्णन में ये भी अक्षम हो जाते हैं।
उपर्युक्त अपरिवर्तनशील एवं शाश्वत अवस्था को समझने के लिए 'न अंधकार न प्रकाश' की अवस्था सम्भवतः सहायक हो सकती है।
हमारा वर्तमान अस्तित्व इसी शुद्ध एवं परम अवस्था से विकसित हुआ है।
इसे शाश्वत शान्ति का क्षेत्र कहा जा सकता है जो चिन्ह में सबसे ऊपर दिखाया गया है।
वहाँ 'न प्रकाश' है 'न अन्धकार'।
उसके नीचे 'सत्य -पद' नामक क्षेत्र है जहाँ 'सत्य सर्वप्रधान' है।
इसलिए यह क्षेत्र प्रकाश का क्षेत्र है यद्यपि यहाँ प्रकाश अत्यन्त सूक्षम अवस्था में विद्यमान रहता है।
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स्रोतः- परिशिष्ट ,सत्य का उदय- लेखकः राम चन्द्र, शाहजहाँपुर, उ.प्रदेश, भारत ।।
सौजन्यः-सोसाइटी फॊर बाबूजीज् मिशन, नई दिल्ली, भारत ।।
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