सहज मार्ग दर्शन मूल लेखक महात्मा राम चंद्र ( Special Personality) स्थान : शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश, भारत .................समय वर्ष : १९४५-४६ ई०

Posted On Sunday, August 14, 2016 | 2:39:15 PM

सहज मार्ग दर्शन
मूल लेखक
महात्मा राम चंद्र ( Special Personality)
स्थान : शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश, भारत .................समय वर्ष : १९४५-४६ ई०
अनुवादक
लक्ष्मी शंकर

परिचय

दर्शन की धारणा

दर्शन एक ऐसा विषय है जिसका आधार तर्क नहीं , अपितु अंत: स्फूर्ति है ।
इसका प्रारम्भ ' संशय ' से नहीं होता, जैसा कि अधिकांश पाश्चात्य दार्शनिक मानते हैं बल्कि ' आश्चर्य ' से ।
आमतौर पर दार्शनिकों ने चीजों को बिना वास्तविक जीवन में उतारे ही समझने का
प्रयास किया है जैसा कि पाशचात्य दार्शनिकों के साथ आम बात है ।
मैं कह सकता हूँ कि यह आवश्यक नहीं कि एक दार्शनिक मात्र दार्शनिक होने के
नाते भ्रष्ट अथवा च्युत नहीं हो सकता ।
परन्तु यदि उसने व्यवहारिक जीवन जी कर चीजों का अध्ययन किया होता तो
भ्रष्टाचार की सम्भावना नहीं होती ।
भारत के ऋषियों ने पहले व्यवहारिक जीवन जीने के पश्चात ही सामान्यतया
दार्शनिक प्रयास किए हैं । उन्होंने अपनी पहुँच के स्तर के अनुसार भरसक , स्थित
वस्तुओं के रहस्यों को खोला। इसका परिणाम विभिन्न रंगों के छ:दार्शनिक मत हैं ।
हमें तो वस्तुओं के सम्बंध में तभी धारणा व्यक्त करने का प्रयत्न करना चाहिए
जब हमारा अभ्यास समाप्त हो गया हो । यह तो चीजों की परिशुद्धता या सच्चाई
प्राप्त करने के लिए एक दार्शनिक के ध्यान देने योग्य मूलभूत बात है ।

अध्यात्मिकता

भारत एक अध्यात्मिकता का घर है और इसी से यहाँ वास्तविकता के सम्बंध
में चेष्टाएँ हर युग में क्रियाशील रही हैं । अध्यात्मिकता उस शक्ति से सम्बंधित
एक विज्ञान है जिसका प्रवाह मौलिक भंडार से होता है और जिसमें ग्रंथियों के
रूप में सृजन एवं संहार दोनों की क्षमता होती है ।
भारत में ऋषियों ने सृजन शक्ति का प्रयोग मानवता के सुधार के लिए किया है।
संहारात्मक शक्ति भी इतनी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है कि परमाणु बम भी
इसकी तुलना में कुछ नहीं ।
योगी इन चीजों का प्रयोग दैवी आदेश और अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार
करता है । आजकल भी इस शक्ति का प्रयोग हो रहा है और एक नये संसार का
सृजन हो रहा है ।
अध्यात्मिक पुनर्जागरण का होना आवश्यम्भावी है और भारत पुन: विश्व का
नेतृत्व करेगा , समय इसमें चाहे कितना भी लगे ।
दूसरे राष्ट्रों ने ऐसा महसूस करना प्रारम्भ कर दिया है कि कोई भी राष्ट्र
अध्यात्मिकता के बिना रह नहीं सकता है ।
कूटनीति और दांव पेच का युग अब तेजी से समाप्त हो रहा है । इस शताब्दी के
अंत तक एक बडे़ परिवर्तन का होना अवश्यम्भावी है ।
प्रत्येक मनुष्य को घटित होने वाले का सहर्ष स्वागत करना चाहिए और
अध्यात्मिकता के पथ पर आना चाहिए जिस में ही उसके कल्याण का संवर्धन
निहित है ।
मैं यहाँ पर महानतम दर्शन उजागर कर रहा हूँ ।
प्रारम्भ में लोग इसको सम्भवत: न समझ पावें परन्तु कालान्तर में वे अवश्य
ही इसका इसी रूप में अनुभव करने लगेंगे । ........................क्रमश:

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